साधू बाबा के निकलते ही, सबने उन्हें नमस्कार किया और खाने-पिने के ऊपर अपनी चर्चा जारी राखी। चर्चा ख़त्म होते ही, बाबा ने सबको एक कहानी सुनाने की सूझी। सभी लोग कहानी सुनने को तैयार थी और मैं काफी ज्यादा उत्सुक।
वो पौराणिक कहानी कुछ इस तरह है।--देवताओं ने जब इन्सान की रचना की तब इन्सान नासमझ था, उसे सिखाना पड़ता था। भगवन ने भी उन्हें एक अच्छी आदत सिखानी चाही। और एक कौवे को इंसानों तक अपनी बात पहुचाने का माध्यम बनाया! भगवान् ने इंसानों को ये संदेसा भेजा के " दो बार नहाओ-एक बार खाओ" ऐसा करने से मनुष्य रोग मुक्त रहेगा और उसकी उम्र लम्बी होगी।. कौवा भी भगवान से अनुमति लेकर ये सन्देश इंसानों तक पहुचने को निकल पड़ा!
लेकिन बिच रास्ते में उसे एक चालाकी सूझी। भगवान द्वारा बताये गए सन्देश "दो बार नहाओ-एक बार खाओ" में उसे अपना कोई फ़ायदा नहीं दिख रहा था। क्यूंकि अगर मनुष्य दिन में दो बार नहाता और एक बार खाना खाता, तो किसी भी बीमारी से दूर रहेगा और जब भी दिन में एक बार खाना खाएगा तो पेट भर कर खाएगा और कौवे के लिए कोई जूठन नहीं छोडेगा। इससे कौवे की जाती पर भुखमरी की आफत आजाती।
उसने अपने फायदे के लिए उस सन्देश को उल्टा कर दिया। अब "दो बार खाओ, एक बार नहाओ" का नारा लगाते हुए वो मनुष्यों के पास पंहुचा और सबको भगवान के नाम पर उल्टा सन्देश दे आया। इसके पीछे उसकी चालाकी ये थी के अगर मनुष्य दिन में एक बार नहाता है तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु अगर दिन में दो बार खाना खाता है तोह वो अपनी थाली में कुछ न कुछ जरुर छोड़ेगा जो आखिर में फेक दिया जाएगा और उसे कौवे खा लेंगे।
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