कुछ
ढूंढली यादें और कंप्यूटर में रक्खे हुए कुछ फोटो ने मेरा ध्यान आकर्षित किया! जैसे ही मैंने फोटो देखने के लिए खोला तो सहसा याद आगया के यह सारे फोटो 2012 के सावन के महीने की हैं! वह मेरा आखरी सावन था जब बाबा धाम से लौटने के बाद, आखरी सोमवार को मैं अपने दोस्तों के साथ कलकत्ता के निमतला समसान घाट स्तिथ बाबा भूतनाथ के मंदिर गया था! आखरी सावन इसलिए क्यूंकि 2013 में पिता जी के परलोक सिधारने के बाद; ना ही मैं बाबा धाम गया और ना ही सावन के महीने में भूतनाथ मंदिर! समय बीतता गया, संन् 2014 आगया और मैं फिर से उसी जगह खड़ा हूँ जहाँ मैंने खुद को छोड़ा था! आज उन्ही यादों और अनुभव को कुछ पुराने फोटो के जरिये आपके सामने ला रहा हूँ!
मैं हावडा में रहता हूँ, इसलिए बाबा के मंदिर जाने के लिए मुझे बांधाघाट लांच घाट से फेरी पकड़नी पड़ती है! इस सुभ यात्रा की शुरुआत गंगा नदी पर सफर करने से शुरू होती है!
गंगा नदी पार करने के बाद, मंदिर के सामने सटे हुए नल से हाथ-पैर धो कर फूल-पत्रिका खरीदने के उपरांत मंदिर के द्वार के सामने लगे हुए कतार में लग जाने की कार्यविधि चालू होती है! सावन के महीने में श्रद्धालुओं के हुजूम के बीच लगे हुए कतार का आखरी छोड़ भी खोज पाना बहोत मुश्किल हो जाता है, क्यूंकि यह नीमतल्ला घाट से भी आगे बड़ाबाजार के पोस्ता इलाके तक लम्बी लग जाती है!
शिवरात्रि और सावन के महीने में यहाँ अलग-अलग विषयों पर बनायीं हुयी मूर्तियां और नैतिक बातों पर आधारित झुग्गियां भी देखने को मिलता है! जैसा के ऊपर वाले चित्र में आप देख रहे होंगे के भगवान शिव-संभु अपने प्रत्येक भक्त के साथ रहते हैं, चाहे वह दर-बदर भटक कर बच्चों को गुब्बारे बेचने वाला ही क्यों ना हो!
जैसे जैसे आप अंदर बढ़ते जाते हैं, वैसे वैसे ही मंदिर के अंदर का दृश्य मनोरम होते जाता है! शेषनाग के छाया में बैठे अर्धनासिरवार के दर्शन से ऐसा प्रतीत होता है मानो आत्मा-परमात्मा में विलीन हो रही हो!
समय का मूल्य निजी जीवन में ही नहीं, बल्कि मंदिरों में लागु होता है! अगर आप समय पर पहुंच गए तो बाबा भूतेस्वरनाथ के श्रृंगार विधि के भी साक्षी बन सकते हैं! ऐसा सौभाग्य मुझे प्राप्त हो चूका है, जानने के लिए पढ़े मेरा दूसरा ब्लॉग-पोस्ट
दर्शन के उपरांत आरती करने का समय हो जाता है, भक्तजन मंदिर से बाहर बने मंदिर के प्रांगण में कपूर और आरती की थाल लेकर सामने के दीवार पर अंकित मन्त्रों के उच्चारण के साथ आरती करने लगते हैं! आरती हो जाने पर, आरती की थाल में स्वेत कपूर की ज्वलनशील शुद्धता से निकले हुए कालिख का ही टिका कर लेना पड़ता है, अगर आप चाहें तो बाकि की कालिख उसी कपूर के कागज में पोंछ कर अपने हिट-मित्रों को भी टीकाकरण के लिए दे सकते हैं या अपने घर ले जा सकते हैं!
ज़रा ठहरिये, सिर्फ बाबा भूतनाथ के दर्शन कर वापस घर न जाएं! अभी तो मोटा-महादेव के दर्शन बाकि हैं! बाबा भूतनाथ के मंदिर के विपरीत से कलकत्ता सर्कुलर रेलवे की पटरियां गुजरती है, एक सकरी सी गली से घुसते हुए आपको रेल की पटरियां दिख जाएँगी, उन्हें पार करते है ठीक सामने माँ काली, माता जगदम्बा, और पेड़ में अंकित श्री गणेश जी के दर्शन हो जायेंगे! बस उसी मंदिर के बगल से आप मोटा-बाबा जिन्हे मोटा महादेव भी कहा जाता है उनके मंदिर जा सकते हैं!
मोटा-महादेव का मंदिर काफी पुराना है, ऐसा आपको मंदिर की बाहरी दीवारों को देख कर ही पता चल जायेगा! उन्हें मोटा बाबा क्यों कहते हैं शायद उस विशाल शिवलिंग को देख कर ही समझ आजाता है! लोग यहाँ तक कहते हैं के मोटा-बाबा का शिवलिंग हर साल थोड़ा-थोड़ा बढ़ते रहता हैं और जिस दिन यह शिवलिंग अपने मंदिर के गुम्बज से स्पर्श होगा, उस दिन कलयुग का अंत हो जायेगा!
मोटा-बाबा के पूजा और दर्शन के बाद, पेड़े का प्रसाद आपस में बांटते हुए हम सभी लोग वापस अहिरीटोला से बांधाघाट के लिए लांच पकड़ कर वापस नदी के इस पार आ जाते हैं!
Lord Shiva at Bhootnath Temple-- Smartphone Photography by JNK |
Bandhaghat Launch Ghat-Howrah side (Smartphone Photography by JNK) |
मैं हावडा में रहता हूँ, इसलिए बाबा के मंदिर जाने के लिए मुझे बांधाघाट लांच घाट से फेरी पकड़नी पड़ती है! इस सुभ यात्रा की शुरुआत गंगा नदी पर सफर करने से शुरू होती है!
Smartphone Photography by JNK |
गंगा नदी पार करने के बाद, मंदिर के सामने सटे हुए नल से हाथ-पैर धो कर फूल-पत्रिका खरीदने के उपरांत मंदिर के द्वार के सामने लगे हुए कतार में लग जाने की कार्यविधि चालू होती है! सावन के महीने में श्रद्धालुओं के हुजूम के बीच लगे हुए कतार का आखरी छोड़ भी खोज पाना बहोत मुश्किल हो जाता है, क्यूंकि यह नीमतल्ला घाट से भी आगे बड़ाबाजार के पोस्ता इलाके तक लम्बी लग जाती है!
Smartphone Photography by JNK |
Smartphone Photography by JNK |
शिवरात्रि और सावन के महीने में यहाँ अलग-अलग विषयों पर बनायीं हुयी मूर्तियां और नैतिक बातों पर आधारित झुग्गियां भी देखने को मिलता है! जैसा के ऊपर वाले चित्र में आप देख रहे होंगे के भगवान शिव-संभु अपने प्रत्येक भक्त के साथ रहते हैं, चाहे वह दर-बदर भटक कर बच्चों को गुब्बारे बेचने वाला ही क्यों ना हो!
Smartphone Photography by JNK |
Image Source- Admin of http://dharmikraj.blogspot.in/ |
Smartphone Photography by JNK |
ज़रा ठहरिये, सिर्फ बाबा भूतनाथ के दर्शन कर वापस घर न जाएं! अभी तो मोटा-महादेव के दर्शन बाकि हैं! बाबा भूतनाथ के मंदिर के विपरीत से कलकत्ता सर्कुलर रेलवे की पटरियां गुजरती है, एक सकरी सी गली से घुसते हुए आपको रेल की पटरियां दिख जाएँगी, उन्हें पार करते है ठीक सामने माँ काली, माता जगदम्बा, और पेड़ में अंकित श्री गणेश जी के दर्शन हो जायेंगे! बस उसी मंदिर के बगल से आप मोटा-बाबा जिन्हे मोटा महादेव भी कहा जाता है उनके मंदिर जा सकते हैं!
Smartphone Photography by JNK |
मोटा-महादेव का मंदिर काफी पुराना है, ऐसा आपको मंदिर की बाहरी दीवारों को देख कर ही पता चल जायेगा! उन्हें मोटा बाबा क्यों कहते हैं शायद उस विशाल शिवलिंग को देख कर ही समझ आजाता है! लोग यहाँ तक कहते हैं के मोटा-बाबा का शिवलिंग हर साल थोड़ा-थोड़ा बढ़ते रहता हैं और जिस दिन यह शिवलिंग अपने मंदिर के गुम्बज से स्पर्श होगा, उस दिन कलयुग का अंत हो जायेगा!
Smartphone Photography by JNK |