खुश्बुओं की अगर बात की जाये तो सबका अपना-अपना मतामत होता है! और ये लाज़मी भी है क्यूंकि किसीको इत्र की खुशबु अच्छी लती है तो किसीको फूलों की, किसीको अपने माँ के हाथों बनाये हुए पुआ-पकवान की खुशबु अच्छी लगती है तो किसीको अपने प्रेमी या प्रेमिका के कपड़ो से आ रही सुगंध अच्छी लगती है! और जहाँ तक सुगंध की बात है तो अगर पसंद आई तो आपके गुपचुप मन से 'वाह' जैसे शब्दों का उच्चारण भी करवा सकती है और अगर सुगंध पसंद नहीं आई तो आपके नाक को रुमाल से ढकवा भी सकती है, सब दिमाग का खेल है, जो पसंद हो -वो सुगंध, जो नापसंद-वो गंध!
अब जब बात उठ ही चुकी है तो मैं अपने साथ हुआ एक वाक्या आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ! बात उस समय की है जब स्कूल की गर्मी की छुट्टियों में या किसी रिश्तेदार कि शादी में मैं, माँ और पापा के साथ गांव जाया करता था! चिलचिलाती गर्मी का महीना और उत्तर पदेश की लूः भरी दोपहरी में घर से बाहर निकलना मुहाल हो जाता था! मैं छोटा बच्चा था और साथ में ज़िद्दी भी इसलिए कुछ दिनों की स्कूल की छुट्टी में लू हो या गर्मी, क्रिकेट खेलने तो आम के बगीचों में जाना ही था, आखिर गावं के दूसरे बच्चे भी खेलने आते थे उतनी गर्मी में तो भला मैं क्यों नहीं! माताजी के लाख समझाने पर के गर्मी में घूमोगे तो लू लग जायेगा और क्यूंकि मैं दूसरे शहर (कलकत्ता) से आया हूँ और वहां लू नहीं चलती इसलिए तुम्हे पता भी नहीं के लू कितना खतरनाक हो सकता है, वगैरह-वगैरह जैसी बातों को अनदेखा कर मैं सरपट आम के बगीचे की तरफ दौड़ पड़ा करता था!दो-चार दिन तो आराम से खेलते और घर लौटकर माँ से डांट सुनते हुए बिता, पर अचानक एक दिन भगवान को भी क्या सूझी और गर्मी की भरी दोपहरी में काले-काले बादल घिर आये! देखते ही देखते, वातावरण ठंडी और तेज़ हवाओं के सरसराहट से गूंज उठा, फिर कुछ समय उपरांत बादलों ने अंगड़ाई ली, मानो ऐसा प्रतीत हुआ के अंगड़ाई लेने के वजह से उनकी हड्डियों की चरमराहट से ही बिजली के तड़कने की आवाज़ आ रही हो! घर ज्यादा दूर नहीं था इसलिए मैंने भी अपने गावं के दोस्तों के साथ आम के बगीचे में ही ठहरने का सोचा, जब तक की ये काले बादल मुझे डराना बंध न कर दें!
अचानक ज़ोर-ज़ोर से बारिश होने लगी, मोटी-मोटी बारिश की बूंदें जब आम और पीपल के पत्तों से टकराने लगीं तो एक अलग से संगीत का एहसास होता, ऐसा लगता जैसे बिजली के तड़-तड़ाने की आवाज़ का किसीने 'पिच और टोन' बदल दिया हो! मुसलसल, ये तेज़ बारिश सिर्फ 10 से १५ मिनट तक ही हुयी, पर इतने ही समय में इसने अपना काम कर दिया था, मिटटी के रास्ते कीचड़ से सन चुके थे, पत्तों पर लगी धूल बह चुकी थी! पर सबसे रोचक बदलाव यह था के अचानक ही पूरा वातावरण मिटटी की भीनी सुंगंध से महक उठा था, ऐसा प्रतीत हुआ के वह सुगंध मेरे चित्त को प्रसन्न कर गयी, और शांत सा रहने वाला मेरा मन किसी अंजानी ख़ुशी को पाकर फुले नहीं समां रहा था! अगले कुछ घंटों तक मैं जहाँ भी जाता उस सुगंध को खुद के समीप पाता और सोचता के काश ये सुगंध मैं अपनी मुट्ठी में कैद कर सकता!
उस दिन एहसास हुआ के जिस देश की मिटटी और पानी का हम अनाज खाते है उसमे सिर्फ अनाज उपजाने की ही छमता नहीं बल्कि उसी मिटटी और पानी के मिलन में एक ऐसा सुगंध बसा हुआ जो आपका मन मोह लेगा, पर आप उसको संजो कर अपने साथ नहीं रख सकते! पर अगर ऐसी सुगंध बिन बारिश लेने की सोच रहे हो तो किसी ईंट के भट्टे पर तस्रिफ़ लाईये, मिटटी को पानी से सानते वक़्त वही गंध आपकी यादों को तरो-ताज़ा कर देगी!